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शनिवार, 15 दिसंबर 2012

जाने क्यों...













 " जाने क्यों, उस राह पे चल पड़े क़दम।
  जबकि जानती हूँ, तू उस राह का...
  ना साथी होगा, ना हमदम।।

  कभी इंतज़ार के कांटो से,
  छलनी होगा ये मन 
  या फिर
  कभी तन्हाईओं के पत्थरों से...
  ज़ख़्मी होगा ये तन।
  पर सुकूँ होगा कि,
  दिल से तेरे प्यार का दर्द,
  ना हो सका कम।।

  सौ दर्द मिले, या मिले...
  रुसवाईयों  का गम,
  बस तेरे इश्क़ का जुनूं रहे...
  फिर चाहे आँखें, रहें नम।
  इक उफ़्फ़ जो किया तो,
  साँसों की दिल से...
  टूट जाएगी कसम।।

  इस अल्हड़-सी कसम को,
  हम निभाएंगे हर जनम।
  क्यूं कि, तेरे इश्क़ में...
  लुटना, मिटना, मरना...
  मेरा अपना है करम।  
  फिर चाहे तू माने, तेरे लिए...
  मेरा, ये प्यार सच्चा,
  या झूठा-सा भरम।। 





 

 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

एक गीली हँसी...:-)

 तुझे ढूँढती रही, तुझे खोजती रही 
मैं सोचती रही...तू है यहीं कहीं।
तुझे चाहती रही, तुझे माँगती रही 
मंदिर- मस्जिद के चक्कर काटती रही।

कैद करने की ज़िद में,पीछे भागती रही 
तुझे पाने की होड़ में, खुद से हारती रही।
तू छिप गयी कहीं, आँखों से ओझल हुई 
तू जो हाथ न लगी, मन को मायूसी हुई।

थक के बैठी जो मैं, अपना दिल हार के 
छोड़ दिए सारे पैंतरे, मन के व्यापार के ।
एक गीली हँसी, चुपके से- हौले से, प्यार से 
लबों पे बैठी मिली, बड़े ऐतबार- इख़्तियार से।

मेरा दिल खिल गया, मुझे हंसी आ गयी 
मैंने उसे पा लिया, वो मुझे मिल गयी ।
मेरी ख़ुशी जो थी, मुझ में कहीं समायी हुई 
आज लबों पे खिली है, ले कर अंगड़ाई नई ।

सोमवार, 13 अगस्त 2012

ये कैसा ख्वाब....

 आज ना-जाने कैसे तुम्हें, अपने आस -पास महसूस किया।
अपने आस-पास ही नहीं, दिल के नज़दीक महसूस किया ।।
फिर दिल, उन्ही धुंधले ख्वाबों का एल्बम बन गया ।
फिर भीगी पलकों ने, उन हसीं लम्हों को साफ़ किया।। 
 वो लम्हे, तेरी बे-पनाह मोहब्बत वाले ,
वो लम्हे, तेरी सोहबत में कटने वाले....
तेरे जाने से आने तक की घड़ियाँ गिनने वाले ,
वो लम्हे, तेरी कुर्बत में मिटने वाले.....
तुझसे मिलने की दुआ को, खुदा ने जाने कितनी दफा क़ुबूल किया।
पर शायद, किस्मत की लकीरों ने, हमे दूर जाने को मजबूर किया ।।
ये ख़्वाब, किसी किस्मत के ग़ुलाम नहीं,
कोई भी पढ़ ले जिन्हें, ऐसे ये पैग़ाम नहीं....
आँखों में उतर, दिल को सुकूं दे जाते हैं,
फिर चाहे ज़िन्दगी में, मिले इन्हें कोई मकाम नहीं....
आँखें खुली, ख्वाब बिखरे, फिर तुझे अपने से महरूम किया ।
पर तेरे अक्स को, अब भी दिल के आईने में महसूस किया ।।
 




मंगलवार, 5 जून 2012

वो मेरे आँगन के बैंगनी फूल...

 आह!! वो मेरे आँगन के बैंगनी फूल...
उन्हें जो देखती हूँ तो,
मन उल्लास से भर जाता है।
मन एक हलकी-सी, नन्ही-सी
अंगडाई ले...
यादों की रजाई ओढ़ लेता है।
मन उन्ही सपनों के रास्ते
निकल पड़ता है....
जहाँ कभी हम एक दूसरे की,
बाहें थामे... कहीं दूर निकल जाते थे ।
और ये बैंगनी फूल हम पे
गिरते हुए जताते थे....
कि वो गवाह हैं, हमारे बीच पनपे...
उस प्यार के...
आँखों में किए हुए...
उन मूक संवादों के वादों के,
जिन्हें चाहकर भी ना तुम- ना मैं
और ना उस फूल को बनाने वाला,
झुठला सकता था ।
शायद, इसीलिए आज भी खिलते हैं...
मेरे घर के आँगन में,
प्यार की वफ़ाएं लिए वो बैंगनी फूल...:)

रविवार, 13 मई 2012

माँ तुम्हारी याद....



माँ तुम्हारी याद आती है तो 
लगता है मेरा मन.....
गंगा-सा पावन हो गया ।
एक बंजर धरा सा तड़पता 
ये मेरा जीवन.....
तेरी ममता के मल्हार से 
सावन हो गया ।।






जाने कितने ही दुःख हैं तुमने सहे,
पर न नैनों से आंसू के सागर बहे ।
नन्ही कलियों की खुशियाँ कायम रहे,
फिर चाहे काटों से तेरा दिल घायल रहे। 



  मुझे सींचने- सँवारने की चाह में 
तेरी जाने कितनी  ही....
खुशियों का तर्पण हुआ ।
जब विदा किया मुझको डोली में 
जानती हूँ, सूना तेरे....
मन का आँगन हो गया ।। 




दिल करता है अब भी
 एक मासूम की तरह तेरी गोद में
 अठखेलियाँ करूँ ,
कोई डांटे, डराए, धमकाए तो 
तेरे पल्लू के ओट में छिपकर
 इतराया करूँ .....



जब भी दिल भटका, टूटा 
या किसी चोट से आहत हुआ,
उस घाव पर तेरे दुलार का मरहम...
शीतल चन्दन हो गया ।
जब भी मन, कभी संशय की 
धुंध  से कलुषित हुआ,
तेरे सीख की कूची से मेरा मन
उजला दर्पण हो गया ।।





तेरे प्यार, दुलार, ममता के 
ऋण से मैं शायद ही मुक्त हो पाऊं 
या यूँ कहें कि  मैं शायद ही 
मुक्त होना चाहूँ ..... 

तेरे चरणो में बसे चारों धाम के 
तीरथ करके, बिन कहे ही 
आत्म- समर्पण हो गया ।
तुझे माँ रूप में पाकर,
मेरा जीवन धन्य और मन 
गंगा सा पावन हो गया ।।

रविवार, 22 अप्रैल 2012

ज़िन्दगी,  तुझे क्या नाम दूं....

जिसने नज़रों को हंसीन नज़ारे दिए,
 लबों को हंसी के दो किनारे दिए,
इम्तिहानो में जब भी पुकारा उसको, 
उसकी बाहों ने हमें सहारे दिए......
ज़िन्दगी तू ही बता, तुझे क्या नाम दूं मैं ।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।। 




जिसने रातों को जगमगाते सितारे दिए,
डूबती कश्ती को बेख़ौफ़ नज़ारे दिए ,
राह के कांटे, जब भी चुभने लगे थे दिल को,
उसने काँटों से चुनी कलियाँ, सिर्फ हमारे लिए....

ज़िन्दगी तू ही बता, तुझे क्या नाम दूं मैं ।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।। 




उल्फत-ए-शाम को जिसने प्यार का सुबह दिया ,
दिल के बेरंग मौसम को जिसने सतरंगी किया ,
दिल की दोपहरी में जब भी दिल उदास हुआ,
मेरे उस हमदम ने चुपके से हाथ थाम लिया ....

ज़िन्दगी तू ही बता, तुझे क्या नाम दूं मैं ।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।। 



प्यार की आरज़ू वाले दिल की बात सुनते हैं,
दिल की बन्दगी को ही, वो खुदा कहते हैं,
तुम मेरी ज़िन्दगी, बन्दगी, वफ़ा हो हमदम,
 दिल को जो सुकून दे , तुम्हें ऐसी दुआ समझते हैं...

जज्बातों को जो बयाँ करे...
                तुम्हे वो रूह-ए- ग़ज़ल नाम दूं मैं।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।। 





शुक्रवार, 2 मार्च 2012

तुम्हारा प्यार, मेरे लिए......

ये नयी कविता, सिर्फ तुम्हारे लिए...शायद जुबां से कभी कह पाऊं-

तुम्हारा प्यार, मेरे लिए...
आकाश में उड़ते पंछी जैसा है
निर्बाध उड़ान, हवा के समान
बिना किसी रोक-टोक के....मैं उड़ती हूँ बेबाक, पर जानती हूँ
मेरा बसेरा कहाँ है ,
मेरा सवेरा कहाँ है

तुम्हारा प्यार, मेरे लिए...
उस पतंग जैसा नहीं,
जिसकी डोर,
कोई और थामे होता है...
अपने हिसाब से तोड़ता-मोड़ता है

 तुम्हारा प्यार, मेरे लिए...
उस
पूजा की घंटी जैसी है,
जो
कभी भी बजती है तो....
कानों में अमृत घोल देती है,
जो
बिना इश्वर को रिझाये....
अपना
तारतम्य नहीं तोडती

तुम्हारा प्यार,मेरे लिए.....
उन रजनी-गंधा के फूलों जैसी है,
जो
रात में अपनी खुश्बू से....
मेरे ख्वाबों को महकाती है,
तो सुबह को सिरहाने के पास....
बीते रात की,याद दिला जाती है

तुम्हारा प्यार, मेरे लिए.....
उन कांच की चूड़ियों जैसा है,
जिनके रंग कभी-भी....
हलके नहीं पड़ते,
जिनकी छन-छन कभी अपनी....
मधुरता नहीं खोती
 
तुम्हारा प्यार, मेरे लिए.....
उस सागर की गहराई जैसा है,
जिसका अंदाज़ा किनारे खड़े होके
कभी नहीं होगा,
तुम्हारे
प्यार में डूब के उतरना ही...
मेरा नसीब होगा

तुम्हारा प्यार, मेरे लिए.....
उस
इन्द्र-धनुष के जैसा है,
जो चिल-चिली धूप में....
बिन
मौसम बरसात-सा हैं,
उदासी से भरे चेहरे पर....
हलकी सी मुस्कान -सा है

तुम्हारा प्यार, मेरे लिए.....   
 क्या बताऊँ कैसा कैसा है???
रात के बाद, सवेरा सा है....
धूप
में छाँव घनेरा सा है....
पलकों
पे ढुलक आये....
प्यार
के मोती सा है...
मेरे जीवन को जो रोशन करे....
उस प्रीत की ज्योति सा है

गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

इंतज़ार में......


शाम की छाँव में....
हिलती टहनियों पर पड़े अपने घोंसले की ओर

पक्षियों के झुरमुट को जाते देखती हूँ....

दिल एकदम से पूछ बैठता है.....

तुम कब आओगे ????


रात की चांदनी में....

सरकते बादलों को चांदनी की ओर

तेज़ कदमो से ढकते देखती हूँ ...

दिल एकदम से पूछ बैठता है....
तुम कब आओगे????


सुबह की अधखुली पलकों से ....

अपने हाथों की लकीरों की ओर

देखके जब भी माथे की लकीरों से जोडती हूँ....

दिल एकदम से कह उठता है....

अब तो जाओ.....


ये दिन ये रात....ये पल ये लम्हे

तेरे बिना ऐसे ही सूने हैं......

जैसे अधखिली कली...भँवरे के बिना....

बाट जोहते नयन....संवरे बिना....

शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012

कुछ ऐसे ही...बस तेरे लिए


तुम्हारे लिए कुछ दिल की बातें, कुछ सौगातें लिख लायी हूँ ...चाहो तो कागज़ के मामूली टुकड़ा समझ लेना या फिर इस अफसाने को दिल की किताब में बंद कर लेना.......
१-"ज़िंदगी से अब कुछ नहीं ...बस साथ रहने की मोहलत चाहती हूँ ,
हीरे - मोती सब लुटा दूं तुमपे ...बस तेरे प्यार की दौलत चाहती हूँ
तेरे ना होने का एहसास ही ...दिल में सिहरन के लिए काफी है ,
साथ तेरे गुज़रे हर लम्हा मेरा .... ज़िन्दगी से ये ही दुआ मांगती हूँ ।"
२-"दिल में कुछ उदासी थी, तेरे लिए एक हंसी हँस दिए ,
चाहते थे कहीं और जाना ..पर कदम तेरी ओर चल दिए ,दिल में कोई बात थी,कहना था ,पर लब क्यूँ सिल गए ,ज़िन्दगी से क्यूँ जुदा हैं , ये ज़िन्दगी के फलसफे ....."


३-"जब भी अक्स तेरा ,किसी चेहरे में देखती हूँ ...
तू रहता है कहाँ , उससे तेरा पता पूछती हूँ ...
ना जाने दिल इतनी बेकरारियां सहता क्यूँ है ..
जब कि वो जनता है तू मुझमे और मैं तुझमे हूँ ..........
"

४-"ना देखो ज़माने के रंग -ओ -ढंग
ना सीखो दीवाने से दिल की बातें ....
अब कहाँ दिखते हैं उल्फतों में रंग
अब कहाँ मिलती हैं प्यार की सौगातें "



५-"तुम कुछ ना कहते थे तो भी हम सुन लेते थे
अब जज्बातों में वो करामात नहीं, तुम्हारे बिना ...
हमें तन्हाई का भी ग़म नहीं, तुम ख्यालों में साथ थे
अब तो भीड़ में भी हैं अकेले....तुम्हारे बिना "



-"ज़िन्दगी में तेरे बिना एक कमी सी थी
अब
तू है तो...एक रौनक है , जश्न है ...
सजी
दिल की महफ़िल है .....
बे
-मंजिल ही तय कर लेते,
हम ज़िन्दगी का सफ़र....
अब
तू ही रास्ता, तू ही सफ़र ...
तू ही मेरी मंजिल है ...............
:)

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

नया सफ़र .....


ज़िन्दगी, फिर नए सफ़र पर चल निकली....

जैसे मुट्ठी की रेत हाथ से फिर फिसली

यूँ तो फासले की कोई वजह नहीं तेरे मेरे दरमियाँ

वो तो एक बात थी, जो बन गयी है तितली

फिर नए रास्ते, नयी मंजिल, नया कारवां...

जैसे नदिया, सागर से मिलने फिर हो निकली

कहते हुए सुना है कि 'अंत भला तो सब भला '

पर उस दरम्या, हमने ज़माने की सच्चाई जान ली

मैं चली थी मन के केनवास पर स्याह लकीरें खींचने

पर मेरी तो ज़िन्दगी ही, इन्द्र-धनुषी कूंची निकली

तेरे आने की आहट से,बादल छट गए उदासी के

मौसम में रंगीनियत थी, धूप भी उजली निकली

संग तेरे, ज़िन्दगी का हर सफ़र आसान है

ज्यूँ लगे कि बदली में ,तारों की बारात हो निकली