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सोमवार, 18 नवंबर 2013

“रुक जाती है ज़िंदगी’’



किसी ने कहा मुझसे...
“ज़िंदगी कहाँ रुकती है
किसी के चले जाने से
किसी के खो जाने से
किसी के यादों मे समा जाने से...
वो तो यूंही चलती है
जैसे
उससे कुछ छूटा ही नहीं
उसका कोई खोया ही नहीं
वो कुछ भूल पायी ही नहीं।’’
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मैं बस इतना कहूँगी
तुम्हें क्या पता, तुम क्या जानो
ज़िंदगी कैसे रुकती है
किसी के चले जाने से....
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ऐसा लगता है....  
जैसे आगे कोई मोड ना हो
सड़क के मुहाने पे
बस एक खाई हो गूँजती हुई
लगी हो उसके यादों को दोहराने मे....
  
कोई ख़ामोशी की अंधेरी सुरंग
के उस पार से
तुम्हें पुकार रहा हो और
तुम पहुँच ना पाओ उस ठिकाने पे.... 

लगता है कोई झट से बुलाएगा
किसी बहाने से
और छोड़ जाएगा रजनीगंधा के फूल
बिस्तर के सिरहाने पे.....  

या कभी कोई यूं ही खुश होगा
तुम्हें नज़दीक पाके बुदबुदाने से 
और कभी आती रहेगी उसकी सदा
किसी बीते हुए ज़माने से....

कभी लगता है सतायेगा कोई
भीगे बालों को सहलाने से
या कर जाएगा मन अधीर
अपने गाये हुए तराने से....
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वो सब रह जाएगा तुम्हारे पास
जो उसके लिए तुमने माँगा था
वो दौलत-शोहरत वो दुनिया का बाज़ार
पर वो ना होगा जिससे तुम्हारा नाता था
एक पल को ही सही
रुक जाती है ज़िंदगी, थम जाती है साँसे
ये सोच के कि
अब वो ना आएगा तुम्हारे लाख बुलाने पे
वो जो रूठा तो ना माना तुम्हारे मनाने से  
अब ना कहना कि
ज़िंदगी कहाँ रुकती है
किसी के चले जाने से
क्यूंकि....  
मैंने देखा है वो आलम,
उसे रूह से महसूस किया है
ना चाहते हुए भी,
उन हालातों को बदस्तूर जिया है।
फिर भी ना यकीं हो तो
एक काम करना....
मुझे चले जाने दो, खो जाने दो  
और ना याद करो किसी बहाने से
फिर देखो रुकती है कि नहीं
ज़िंदगी....किसी के चले जाने से!!