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रविवार, 22 अप्रैल 2012

ज़िन्दगी,  तुझे क्या नाम दूं....

जिसने नज़रों को हंसीन नज़ारे दिए,
 लबों को हंसी के दो किनारे दिए,
इम्तिहानो में जब भी पुकारा उसको, 
उसकी बाहों ने हमें सहारे दिए......
ज़िन्दगी तू ही बता, तुझे क्या नाम दूं मैं ।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।। 




जिसने रातों को जगमगाते सितारे दिए,
डूबती कश्ती को बेख़ौफ़ नज़ारे दिए ,
राह के कांटे, जब भी चुभने लगे थे दिल को,
उसने काँटों से चुनी कलियाँ, सिर्फ हमारे लिए....

ज़िन्दगी तू ही बता, तुझे क्या नाम दूं मैं ।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।। 




उल्फत-ए-शाम को जिसने प्यार का सुबह दिया ,
दिल के बेरंग मौसम को जिसने सतरंगी किया ,
दिल की दोपहरी में जब भी दिल उदास हुआ,
मेरे उस हमदम ने चुपके से हाथ थाम लिया ....

ज़िन्दगी तू ही बता, तुझे क्या नाम दूं मैं ।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।। 



प्यार की आरज़ू वाले दिल की बात सुनते हैं,
दिल की बन्दगी को ही, वो खुदा कहते हैं,
तुम मेरी ज़िन्दगी, बन्दगी, वफ़ा हो हमदम,
 दिल को जो सुकून दे , तुम्हें ऐसी दुआ समझते हैं...

जज्बातों को जो बयाँ करे...
                तुम्हे वो रूह-ए- ग़ज़ल नाम दूं मैं।
दिल कहता है, तुझे अपना रब मान लूं मैं ।।