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शनिवार, 15 दिसंबर 2012

जाने क्यों...













 " जाने क्यों, उस राह पे चल पड़े क़दम।
  जबकि जानती हूँ, तू उस राह का...
  ना साथी होगा, ना हमदम।।

  कभी इंतज़ार के कांटो से,
  छलनी होगा ये मन 
  या फिर
  कभी तन्हाईओं के पत्थरों से...
  ज़ख़्मी होगा ये तन।
  पर सुकूँ होगा कि,
  दिल से तेरे प्यार का दर्द,
  ना हो सका कम।।

  सौ दर्द मिले, या मिले...
  रुसवाईयों  का गम,
  बस तेरे इश्क़ का जुनूं रहे...
  फिर चाहे आँखें, रहें नम।
  इक उफ़्फ़ जो किया तो,
  साँसों की दिल से...
  टूट जाएगी कसम।।

  इस अल्हड़-सी कसम को,
  हम निभाएंगे हर जनम।
  क्यूं कि, तेरे इश्क़ में...
  लुटना, मिटना, मरना...
  मेरा अपना है करम।  
  फिर चाहे तू माने, तेरे लिए...
  मेरा, ये प्यार सच्चा,
  या झूठा-सा भरम।।