" जाने क्यों, उस राह पे चल पड़े क़दम।
जबकि जानती हूँ, तू उस राह का...
ना साथी होगा, ना हमदम।।
कभी इंतज़ार के कांटो से,
छलनी होगा ये मन
या फिर
कभी तन्हाईओं के पत्थरों से...
ज़ख़्मी होगा ये तन।
पर सुकूँ होगा कि,
दिल से तेरे प्यार का दर्द,
ना हो सका कम।।
सौ दर्द मिले, या मिले...
रुसवाईयों का गम,
बस तेरे इश्क़ का जुनूं रहे...
फिर चाहे आँखें, रहें नम।
इक उफ़्फ़ जो किया तो,
साँसों की दिल से...
टूट जाएगी कसम।।
इस अल्हड़-सी कसम को,
हम निभाएंगे हर जनम।
क्यूं कि, तेरे इश्क़ में...
लुटना, मिटना, मरना...
मेरा अपना है करम।
फिर चाहे तू माने, तेरे लिए...
मेरा, ये प्यार सच्चा,
या झूठा-सा भरम।।
फिर चाहे तू माने, तेरे लिए...
जवाब देंहटाएंमेरा, ये प्यार सच्चा,
या झूठा-सा भरम।।
क्या बात है...बहुत प्यारी कविता है...|
बधाई...
प्रियंका
बहुत ही भावुक कविता है रेनू जी!!!
जवाब देंहटाएं:) बहुत बढ़िया . मर्म-स्पर्शी , अनुभूतिपूर्ण . बहुत ही बढ़िया .
जवाब देंहटाएंचरैवेति !! शुभकामनाएं !
मेरी कविता पढने के लिए,मैं आप तीनों का सहृदय आभार। और उम्दा लिखने को प्रेरित करने के लिए शुक्रिया। देर से उत्तर देने के लिए क्षमा चाहती हूँ।
जवाब देंहटाएंAwesome poem renu ji...Keep on writing :)
जवाब देंहटाएंthanks Abhinav...bade dino baad kuchh aur likha h,padh ke batana kaisa hai :)
हटाएंिफर से वही टिप्पणी..... नंबर one.......अितसंुदर।।।।।
जवाब देंहटाएंKeep it up......
Ajay k
सराहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया...ब्लॉग पर आते रहिएगा :)
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