तुझे ढूँढती रही, तुझे खोजती रही
मैं सोचती रही...तू है यहीं कहीं।
तुझे चाहती रही, तुझे माँगती रही
मंदिर- मस्जिद के चक्कर काटती रही।
कैद करने की ज़िद में,पीछे भागती रही
तुझे पाने की होड़ में, खुद से हारती रही।
तू छिप गयी कहीं, आँखों से ओझल हुई
तू जो हाथ न लगी, मन को मायूसी हुई।
थक के बैठी जो मैं, अपना दिल हार के
छोड़ दिए सारे पैंतरे, मन के व्यापार के ।
एक गीली हँसी, चुपके से- हौले से, प्यार से
लबों पे बैठी मिली, बड़े ऐतबार- इख़्तियार से।
मेरा दिल खिल गया, मुझे हंसी आ गयी
मैंने उसे पा लिया, वो मुझे मिल गयी ।
मेरी ख़ुशी जो थी, मुझ में कहीं समायी हुई
आज लबों पे खिली है, ले कर अंगड़ाई नई ।
मैं सोचती रही...तू है यहीं कहीं।
तुझे चाहती रही, तुझे माँगती रही
मंदिर- मस्जिद के चक्कर काटती रही।
कैद करने की ज़िद में,पीछे भागती रही
तुझे पाने की होड़ में, खुद से हारती रही।
तू छिप गयी कहीं, आँखों से ओझल हुई
तू जो हाथ न लगी, मन को मायूसी हुई।
थक के बैठी जो मैं, अपना दिल हार के
छोड़ दिए सारे पैंतरे, मन के व्यापार के ।
एक गीली हँसी, चुपके से- हौले से, प्यार से
लबों पे बैठी मिली, बड़े ऐतबार- इख़्तियार से।
मेरा दिल खिल गया, मुझे हंसी आ गयी
मैंने उसे पा लिया, वो मुझे मिल गयी ।
मेरी ख़ुशी जो थी, मुझ में कहीं समायी हुई
आज लबों पे खिली है, ले कर अंगड़ाई नई ।
वाह. बहुत ही बढ़िया . मजा आ गया पढ़ के ..... सचमुच !
जवाब देंहटाएंकैद करने की ज़िद में,पीछे भागती रही
तुझे पाने की होड़ में, खुद से हारती रही।
तू छिप गयी कहीं, आँखों से ओझल हुई ....................
........ सारी पंक्तियाँ बड़ी मजबूती से टिकी है !
Thank u so much Sir,
हटाएंmujhe bhi apne liye protsahna padh ke, achha laga..:)
Waah ... Thats I can say ...Khubsoorat Panktiyaan aur khoobsurat Khayalaat ... Bahut khoob !!!
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriya kamlesh...ek chhoti si koshish bhar thi...:)
हटाएंवाह....बहुत ही प्यारी और कोमल सी कविता है...मन के अन्दर समायी ख़ुशी लोग खोज कहाँ पाते हैं और इधर उधर भटकते फिरते हैं! :)
जवाब देंहटाएंशुक्रिया अभिषेक...सही कहा तुमने मन की खुशी, कस्तुरी जैसी होती है...अपने मे ही समाई हुई पर खुद को ही उसका ज्ञान नहीं रहता :)
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