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गुरुवार, 2 फ़रवरी 2012

नया सफ़र .....


ज़िन्दगी, फिर नए सफ़र पर चल निकली....

जैसे मुट्ठी की रेत हाथ से फिर फिसली

यूँ तो फासले की कोई वजह नहीं तेरे मेरे दरमियाँ

वो तो एक बात थी, जो बन गयी है तितली

फिर नए रास्ते, नयी मंजिल, नया कारवां...

जैसे नदिया, सागर से मिलने फिर हो निकली

कहते हुए सुना है कि 'अंत भला तो सब भला '

पर उस दरम्या, हमने ज़माने की सच्चाई जान ली

मैं चली थी मन के केनवास पर स्याह लकीरें खींचने

पर मेरी तो ज़िन्दगी ही, इन्द्र-धनुषी कूंची निकली

तेरे आने की आहट से,बादल छट गए उदासी के

मौसम में रंगीनियत थी, धूप भी उजली निकली

संग तेरे, ज़िन्दगी का हर सफ़र आसान है

ज्यूँ लगे कि बदली में ,तारों की बारात हो निकली

6 टिप्‍पणियां:

  1. ज़िन्दगी, फिर नए सफ़र पर चल निकली....

    जैसे मुट्ठी की रेत हाथ से फिर फिसली ।
    ज्यूँ लगे कि बदली में ,तारों की बारात हो निकली।. ..............क्या ब्बात है !!
    बढ़िया है.

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  2. bahut khoob..jajbaato ko itni khobbsoorti se ukere hai..hats off to you
    & your wrting talent

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  3. absolutely correct.... har mod ko dekh kar lagta hai ki maanzil wahi hai, par waha jaa kar pata lagta hai ki ek nayi raah aur hai.

    tabhi to kehte hai ki ek raah khatm hui to ek aur jud gayi, hum mude to saath sath raah bhi mud gayi.

    * well done renu in composing these poems. Keep up the good work and all the best wishes for your publishing efforts.

    PS: waiting for another of many more:)

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