शाम की छाँव में....
हिलती टहनियों पर पड़े अपने घोंसले की ओर
पक्षियों के झुरमुट को जाते देखती हूँ....
दिल एकदम से पूछ बैठता है.....
तुम कब आओगे ????
रात की चांदनी में....
सरकते बादलों को चांदनी की ओर
तेज़ कदमो से ढकते देखती हूँ ...॥
दिल एकदम से पूछ बैठता है....
तुम कब आओगे????
सुबह की अधखुली पलकों से ....
अपने हाथों की लकीरों की ओर
देखके जब भी माथे की लकीरों से जोडती हूँ....
दिल एकदम से कह उठता है....
अब तो आ जाओ.....
ये दिन ये रात....ये पल ये लम्हे
तेरे बिना ऐसे ही सूने हैं......
जैसे अधखिली कली...भँवरे के बिना....
बाट जोहते नयन....संवरे बिना....
Simply superb Renu! Wow! As always, you have composed yet another beautiful poem truely reflective of the depth of your thoughts & most appropriate expressionsve talent! God bless you!
जवाब देंहटाएंThank u so much Kuldip uncle...u always been kind to read my poetry n spend ur precious time on it..:)
हटाएंu really write truely awesum with alot of truth n purity in ur thoughts keep it up :)
जवाब देंहटाएंA heartfelt thanks to u Palak..true appreciation alwys inspire me to write more...write gud..:)
हटाएंLike it di
जवाब देंहटाएंthank u mandy..:)
हटाएंyou have made the 'waiting' a little less burdening....
जवाब देंहटाएंexcellent renu :)
thanks for reading every blog of mine..:)
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