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शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

खुल के मुस्कुरा ज़रा :)





                      

खुल के मुस्कुरा ज़रा, ख्वाब तू नए से बुन..
धड़कने जो गा रही,सुन ले उनकी मीठी धुन
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आँखों की खामोशियों में इक हया,इक शर्म है
 तितलियों के पंख से ,उसमे ख्वाब कितने नर्म हैं,
कोई चुरा ना ले उसे,दिल की ये गुज़ारिश सुन
खुल के मुस्कुरा ज़रा, ख्वाब तू नए से बुन|

ख्वाहिशों को, चाहतों को, मिल गयी उड़ान है.
'कल' तो थी कल की बातें,ये 'आज' तेरी पहचान है.
ज़िन्दगी को जी अभी तू,उसका नया संगीत सुन,
खुल के मुस्कुरा ज़रा, ख्वाब तू नए से बुन|

खुल के मुस्कुरा ज़रा,ख्वाब तू नए से बुन|
धड़कने जो गा रही, सुन ले उसकी मीठी धुन|"

2 टिप्‍पणियां:

  1. चला जा रहा था कि बगल से आपकी कविताओं कि खुशबू ने अपनी तरफ खींच ली..........
    शुभकामनायें ।

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