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मंगलवार, 11 अगस्त 2015

माँ...तुम्हारे जाने के बाद
















साहित्य में नव-चेतना की पैरवी करती पत्रिका 'गाथांतर' मे अपनी कविता का प्रकाशित होना, 
गौरवान्वित महसूस होने वाला पल है।
माँ की याद मे लिखी गयी कविता, उन्ही की स्मृतियों को समर्पित....

माँ, तुम्हारे जाने के बाद
रोज़ निहारती हूँ अपना चेहरा
टटोलती हूँ 
अपनी हंसी में तुम्हारा अक्स
लेकिन इतने दिन हुए
कभी आईने को
मुस्कुराते नहीं देखा


बिवाई मिटाने का मलहम
जोड़ों की मालिश का तेल
तुम्हारे बिस्तर के सिरहाने
फुर्सत से आराम फ़रमा रहे हैं
इस जाड़ेजोड़ों के दर्द से 
जो तुम्हारा वास्ता नही पड़ा

तुम्हारी ग्रे नीली फीके रंग की
सभी साड़ियों को
तह करते समय जाना
तुमने उसमे समेट रखे थे 
कितनी ही नरम मीठी गंध वाली
मुस्कान की रोटियाँ
और हमारी रंग-बिरंगी आवाज़ों वाली
लाड भरी किलकारियाँ


पिछली सर्दी में बनवाया 
तुम्हारी धुंधली आँखों का चश्मा
इस ठंडी में अंधा हो गया
मेरी कविताओं के पन्नों पर बैठे बैठे
सोचता है,
आज कल किसी का भरोसा नहीं
ज़िन्दगी कितनी छोटी हो गयी है!!


2 टिप्‍पणियां:

  1. पिछली सर्दी में बनवाया
    तुम्हारी धुंधली आँखों का चश्मा
    इस ठंडी में अंधा हो गया
    मेरी कविताओं के पन्नों पर बैठे बैठे
    सोचता है,
    आज कल किसी का भरोसा नहीं
    ज़िन्दगी कितनी छोटी हो गयी है!!
    ...सच जिंदगी में कब किस पल क्या घट जाय कोई नहीं जानता ... माँ को समर्पित मर्मस्पर्शी रचना

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