दोस्तों, जानी-मानी समसामयिक पत्रिका "आउटलुक हिन्दी" के जून 2015 के अंक में मेरी कविता "अरुणा शानबॉग की याद में..." प्रकाशित हुई है। इस कविता को मैं अरुणा के जैसी जघन्य त्रासदी झेल चुकी दुनिया की हर स्त्री को समर्पित करती हूँ। उनका असहनीय दर्द, मेरा और हर उस इंसान का दर्द है जो सही मायनों मे दर्द, पीड़ा, वेदना के मर्म को समझता है।
"अरुणा शानबॉग को विनम्र श्रद्धांजलि"!!
कविता
अँधेरा
घना, काला, स्याह अँधेरा
जो कभी वीरान नही होता
ना होता है सुनसान
घना, काला, स्याह अँधेरा
जो कभी वीरान नही होता
ना होता है सुनसान
वहां
चीखती है अनेक
कलपती
साँसों की रुदालियाँ
जो चित्कारती पुकारती
छुप जाना चाहती हैं
उन दरिंदों की स्याह परछाइयों से
जिन्होंने बयालीस साल पहले
उसकी आत्मा का खून कर
उसे उजालों से कर दिया था बेदखल
जो उसे जंजीरों से जकड़,
फेंक आये थे
पीड़ा से भरे अंतहीन काली खोह में
जो चित्कारती पुकारती
छुप जाना चाहती हैं
उन दरिंदों की स्याह परछाइयों से
जिन्होंने बयालीस साल पहले
उसकी आत्मा का खून कर
उसे उजालों से कर दिया था बेदखल
जो उसे जंजीरों से जकड़,
फेंक आये थे
पीड़ा से भरे अंतहीन काली खोह में
उसकी
आत्मा जूझती रही
पल-पल उस काले अतीत से
जिसने उसके उजले भविष्य का
कर दिया था बलात्कार
पल-पल उस काले अतीत से
जिसने उसके उजले भविष्य का
कर दिया था बलात्कार
मन के अँधेरे स्लेट पर से
वो हर संभव,
हर तरीके से मिटाती रही
'बेचारी अरुणा' होने का दाग़
वो हर संभव,
हर तरीके से मिटाती रही
'बेचारी अरुणा' होने का दाग़
और फिर उस दिन
तिल-तिल सुलगते देह के अँगारे में
धड़कनों के बिगुल ने ऐसा साँस फूंका
कि वो, एक तिनका उजाले का
अपनी अंधी आँखों से गटक
अँधेरे के जकड़बंदियों से
हमेशा के लिए आज़ाद हो गयी
तिल-तिल सुलगते देह के अँगारे में
धड़कनों के बिगुल ने ऐसा साँस फूंका
कि वो, एक तिनका उजाले का
अपनी अंधी आँखों से गटक
अँधेरे के जकड़बंदियों से
हमेशा के लिए आज़ाद हो गयी
अब
करती है प्रार्थना
हे ईश्वर!
कभी भूल कर भी तुम
"अरुणा शानबॉग" ना बनाना!!
करती है प्रार्थना
हे ईश्वर!
कभी भूल कर भी तुम
"अरुणा शानबॉग" ना बनाना!!
प्रिय रेणु,
जवाब देंहटाएंशब्द तो तुम्हारे अद्भुत होते ही हैं रेणु लेकिन दर्द की वास्तविकता को जिस प्रकार तुमने बयां किया है, शायद कोई विरला ही व्यक्ति होगा जिस के दिल की तारों को न छुआ होगा।
Huge congratulations to you on being the owner of such beautiful thoughts and your ability to express them in such talented manner.
Kuldip S. Bagga
Michigan (USA)
अंकल जी, आप समझ नहीं सकते आपकी इस प्रतिक्रिया से मेरा कितना उत्साह बढ़ा है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
हटाएंभई वाह मित्र छा गए। लेकिन हां भावनाओं के मर्म को शब्दों में पिरोना कोई आप से सीखे। उत्कृष्ट रचना.
जवाब देंहटाएंबैरागी
आपकी इस अमूल्य टिप्पणी के लिए धन्यवाद मित्र ।
हटाएंसुंदर कविता रेनू जी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद नवनीत।
हटाएंसुंदर कविता रेनू जी
जवाब देंहटाएंकुछ देर थम कर सोचने को विवश कर देने बाली साथ ही बहुत गहरी और लाजवाब कविता.
जवाब देंहटाएंप्रभात कुमार
तुम्हारी ही टिप्पणी का इंतज़ार था। थैंक्स प्रभात...आते रहना।
हटाएंआदरणीय रेनू मिश्रा जी, सादर प्रणाम
जवाब देंहटाएंआपका ब्लॉग देखा और आपकी बहुत इस रचनाओं से रुबरु हुआ. रचनात्मकता की दिशा में आपके प्रयास सराहनीय है. आशा है आप इसमें तेजी लाएंगे।
मैं एक और मकसद के लिए भी आपके ब्लॉग पर यह टिप्पणी कर रहा हूँ. कृपया आप अपने तीनो ब्लॉगों को ब्लॉगसेतु ब्लॉग एग्रीगेटर से जोड़ने की कृपा करें। इससे आपके ब्लॉग को एक मंच मिलेगा, अधिक से अधिक पाठक आपके ब्लॉग तक पहुंचेंगे और आपकी रचनात्मकता से बाक़िफ़ होंगे। हमारा प्रयास अगर आपको बेहतर लगता है तो आप इसे अपने साथियों से भी साँझा कर सकते हैं.
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