माँ तुम्हारा जाना
ज्यों नर्म बचपन का खो जाना
सहसा नए कोपल से
कोमल हृदय का
जड़ सा कठोर हो जाना
माँ तुम्हारा जाना
दुख की तपती दोपहरी मे
या भादों-सी आँखों की बदरी मे
ज्यों सर के ऊपर से,
ममता का छप्पर उठ जाना
माँ तुम्हारा जाना
खोलनी हो कोई गाँठ मन की
या बाँटना हो कोई दर्द जीवन का
मन की गति से पहुँचे
उन संदेसों का
बैरंग पाती हो जाना
माँ तुम्हारा जाना
मन मे गहरे फैले रिक्तता का
अति---रिक्त हो जाना!!
बढ़िया
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अजय जी। एक और कविता लिखी थी माँ पर, पढ़ाऊँगी किसी दिन ।
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