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शुक्रवार, 24 जनवरी 2014

काश!! वो आ जाए....


चाक चौबारे धुल के बैठी
शायद कहीं से वो आ जाए...
नयन-झरोखा  खोल के बैठी
मन के अंतस में खो जाए!!

ख्वाहिश नहीं मेरी बिंदिया निहारे
बैठा रहे मेरे पहलू में.…
बस चाहती हूँ, जब दिल ये पुकारे
सौ जतन करके भी आ जाए!!

ख़ुद से नहीं, तुमसे प्यार किया है
ये कैसे तुम्हें ऐतबार हो....
एक बार तुम मेरी रूह में झाको
शायद तुम्हें अपना दीदार हो जाए!!

मिलने को तुमसे कितने जतन किए 
जैसे प्यार ना हो के, कोई व्यापार हो 
दूरियों की कमज़ोरी मिटा के देखो 
मेरा नन्हा सपना साकार हो जाए !!

बहुत तड़पाया मन को तुमने 

हाथों पे रखे अंगारे सा...
कुछ ऐसे मिलो तुम आके साथी 
जलते मन की प्यास बुझ जाए !!

(प्रस्तुत कविता-मेरे साझा काव्य-संग्रह 
"विरहगीतिका" से )  



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