तुझे ढूँढती रही, तुझे खोजती रही
मैं सोचती रही...तू है यहीं कहीं।
तुझे चाहती रही, तुझे माँगती रही
मंदिर- मस्जिद के चक्कर काटती रही।
कैद करने की ज़िद में,पीछे भागती रही
तुझे पाने की होड़ में, खुद से हारती रही।
तू छिप गयी कहीं, आँखों से ओझल हुई
तू जो हाथ न लगी, मन को मायूसी हुई।
थक के बैठी जो मैं, अपना दिल हार के
छोड़ दिए सारे पैंतरे, मन के व्यापार के ।
एक गीली हँसी, चुपके से- हौले से, प्यार से
लबों पे बैठी मिली, बड़े ऐतबार- इख़्तियार से।
मेरा दिल खिल गया, मुझे हंसी आ गयी
मैंने उसे पा लिया, वो मुझे मिल गयी ।
मेरी ख़ुशी जो थी, मुझ में कहीं समायी हुई
आज लबों पे खिली है, ले कर अंगड़ाई नई ।
मैं सोचती रही...तू है यहीं कहीं।
तुझे चाहती रही, तुझे माँगती रही
मंदिर- मस्जिद के चक्कर काटती रही।
कैद करने की ज़िद में,पीछे भागती रही
तुझे पाने की होड़ में, खुद से हारती रही।
तू छिप गयी कहीं, आँखों से ओझल हुई
तू जो हाथ न लगी, मन को मायूसी हुई।
थक के बैठी जो मैं, अपना दिल हार के
छोड़ दिए सारे पैंतरे, मन के व्यापार के ।
एक गीली हँसी, चुपके से- हौले से, प्यार से
लबों पे बैठी मिली, बड़े ऐतबार- इख़्तियार से।
मेरा दिल खिल गया, मुझे हंसी आ गयी
मैंने उसे पा लिया, वो मुझे मिल गयी ।
मेरी ख़ुशी जो थी, मुझ में कहीं समायी हुई
आज लबों पे खिली है, ले कर अंगड़ाई नई ।