आह!! वो मेरे आँगन के बैंगनी फूल...
मन उल्लास से भर जाता है।
मन एक हलकी-सी, नन्ही-सी
अंगडाई ले...
यादों की रजाई ओढ़ लेता है।
मन उन्ही सपनों के रास्ते
निकल पड़ता है....
जहाँ कभी हम एक दूसरे की,
और ये बैंगनी फूल हम पे
गिरते हुए जताते थे....
कि वो गवाह हैं, हमारे बीच पनपे...
उस प्यार के...
आँखों में किए हुए...
उन मूक संवादों के वादों के,
जिन्हें चाहकर भी ना तुम- ना मैं
और ना उस फूल को बनाने वाला,
झुठला सकता था ।
शायद, इसीलिए आज भी खिलते हैं...
मेरे घर के आँगन में,
प्यार की वफ़ाएं लिए वो बैंगनी फूल...:)