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गुरुवार, 15 सितंबर 2011
अपना- पराया....
"ऐसे कितने ही लोग यूँही,
अपनेपन का सा दम भरते हैं ....
पर दिल पे लगी, नन्ही खरोंच को
बस अपने ही समझते हैं ...
अपने- वो जो दिल के करीब हैं ,
बिन कहे ही सब कुछ समझते हैं ...
ग़ैर- वो जो दिल से निकली बात को
शिकवे का नाम दिया करते हैं....
कश्ती साहिल से मिल जाए ,
ऐसा किस्मत का ही लिखा होता है...
वरना ज़िन्दगी के तूफानों में ,
साहिल भी किनारा करते हैं....
मिलने के ज़माने आयेंगे ,
वो कभी ना कभी मेरा होगा...
दिल को अपने बहलाने के लिए ,
जाने कितने ये भरम रखते हैं ....
चाँद तकता रहा आसमा को,
कब सितारों की बारात होगी....
कुछ अपनी रौशनी से रोशन होके भी,
नाम चांदनी का ही किया करते हैं....
अपना- पराया है कौन यहाँ,
कभी पता जो हम करने निकले ....
कभी पराये भी अपने लगते हैं,
कभी अपने ही सौ जख्म करते हैं......"
सोमवार, 5 सितंबर 2011
मन का गीत गा लूं... तो चलूँ.......
ज़िंदगी के अन कहे नगमे,
मन का गीत गा लूं... तो चलूँ |
मन का गीत गा लूं...तो चलूँ |
कैसे हैं अपने -बेगाने से रिश्ते,
जज्बातों की गुत्थी सुलझा रही हूँ,
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