लम्हों के मुसाफ़िर...
कुछ कहते चलो...कुछ सुनते चलो...ज़िंदगी, लम्हों का सफ़र है...गुजरते चलो :)
Copyright :-
© Renu Mishra, All Rights Reserved
गुरुवार, 9 अगस्त 2018
|| गुमशुदा ||
मैं गुमशुदा रात के किनारे बैठे
जब ख्यालों के क्रोशिये में
अँधेरों को बुन रही थी
चुन
-
चुन के टांक रही थी
सबसे चमकीले दुःख
उसी पल तुमने प्रेम की तीली से
चाँद रौशन कर दिया
दुःख मद्धम पड़ गये
और मैं उजालों से भर गयी
मेरी गुमशुदगी में
तुम मुझे तलाश चुके थे
!!
✍रेणु मिश्रा ©
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)