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मंगलवार, 24 मार्च 2015

तुम्हारे कमरे का मेरा सामान

आज तुम्हारे कमरे मे गयी थी
चुपके से, ठहरे पानी सी
और हवा की तरह ले आई
अपने संग हर वो बात
जो ज़िंदगी के लिए ज़रूरी थी

हाँ
ले आई बिस्तर के सिरहाने से
कॉफी के, दो खाली मग
कड़वाहटों को तलहटी मे छोड़
जिनके संग गुज़ारा था
प्यार भरी चुसकियों का मीठा वक़्त

अरे!! वक़्त से याद आया
ले आई फ़ोटोफ्रेम से
मुस्की वाला, वक़्त का क़तरा
जो लम्हों की सूई से ठोकर खा
वहीं था पड़ा, पतझड़ सा बिखरा
यादों के चिलमन से जो
धूप थी छन के आई
तो उससे लग रहा था
वो कितना उजला निखरा

लो!! उजले से याद आया
ले आई उजले से दिन और
चमकीली रातों वाला कलेण्डर
जिनमे बातें थी उन मौसमों की
जहाँ दिन खिलते थे चंपई से
और रातें महकती थी जैसे लैवेंडर।

अब!! ख़ुशबू की बात कैसे भूलूँ
ले आई तुम्हारी अलमारी से
झाँकता हुआ अपना हरा दुपट्टा
जो तुम्हारी ख़ुशबू से था तरा
और तुम्हारे प्यार को सीने से लगाए
बरसों से था वहीं पड़ा

गुस्ताख़ी माफ़ हो, तुम्हें बताया नहीं
कि मैं कब आई मैं कब गयी
पर शायद तुमने मेरे लिए ही इन्हे
इतने दिनों से सहेज रखा था
ले आई
तुम्हारे कमरे का वो मेरा सामान
जो मेरी ज़िंदगी के लिए ज़रूरी था...!

(प्रस्तुत कविता "धूप के रंग" काव्य संग्रह में जुलाई'14 को प्रकाशित)

रविवार, 8 मार्च 2015

आज तक न्यूज़ चैनल पर मेरी कविता

दोस्तों अभी खुशखबरी मिली कि मेरी नयी कविता "Happy Women's Day" को आज तक की वेबसाइट पर साझा किया गया है...पढ़ें और बताएं कैसी लगी 😊
http://m.aajtak.in/story.jsp?sid=802391

*******हैप्पी वीमेन'स् डे*******










हर दिन सुबह आँख खोलते ही
निहारती हैं हम हथेलियों को
देखती हैं अपने किस्मत की रेखा
जाने रात भर में 
क्या बदल गया होगा
बदलता कुछ नहीं
पैरों में वही चकर घिन्नी लगी है
जो पैदा होते वक़्त 
धरती माँ से खोइन्छे में मिली थी

रोबोट की तरह 
सेट हो चुका है अपना माइंड सेट
अब उसी कण्ट्रोल बटन से चलता है
अपने जीवन का कारोबार
इसलिए कभी कभी याद भी नहीं रहता
अगले दिन इतवार है या सोमवार
तो भला कैसे याद रहेगा
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस का त्योहार
जिसमे हमें याद दिलाया जाता है
कि हमें भी हैप्पी होना है
साल के तीन सौ पैंसठ दिनो में से
अब भला कैसे याद रहे 
अदना सा 8 मार्च का एक दिन 
जबकि इस दिन अपने परिवार में से
किसी का जन्मदिन भी तो नहीं पड़ता
और ना ही होता है
दीवाली, ईद, गुरु-पूरब, ईस्टर
या कोई राष्ट्रीय त्योहार

आज भी 
स्कूल की किताबों में नहीं होता
वुमन के हैप्पी होने का कोई चैप्टर
वो मर्दानी झाँसी की रानी हो सकती है, 
या हो सकती है 
ममता की नदी सी मदर टेरेसा या
करुणा की लौ लिए नाईट-एंगल
बाजू का दम दिखाती मेरीकॉम या
उड़नपरी पी टी उषा हो सकती है
वो हो सकती है 
पुचकारने वाली माँ, 
लाड दिखाने वाली बहन
प्यार लुटाने वाली पत्नी
और ख़याल रखने वाली बेटी या बहु

लेकिन नहीं हो सकती तो बस
खुल कर आज़ाद ख़यालों से
ज़िन्दगी जी लेने वाली आम लड़की
थोपी हुई सोच की दल-दल से निकल कर
खुली हवा में सांस लेने वाली स्त्री
लिंगानुपात की ही तरह
इसे भी महिला दिवस का नाम देकर 
एक दिन में समेट दिया गया है
जहाँ हम उसी रोबोटिक माइंड सेट की तरह
उस दिन खुश हो जाते हैं
रटे-रटाये ज़ुबान से कहते हैं
'हैप्पी वीमेन'स डे'

(रेणु मिश्रा)