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रविवार, 13 मई 2012

माँ तुम्हारी याद....



माँ तुम्हारी याद आती है तो 
लगता है मेरा मन.....
गंगा-सा पावन हो गया ।
एक बंजर धरा सा तड़पता 
ये मेरा जीवन.....
तेरी ममता के मल्हार से 
सावन हो गया ।।






जाने कितने ही दुःख हैं तुमने सहे,
पर न नैनों से आंसू के सागर बहे ।
नन्ही कलियों की खुशियाँ कायम रहे,
फिर चाहे काटों से तेरा दिल घायल रहे। 



  मुझे सींचने- सँवारने की चाह में 
तेरी जाने कितनी  ही....
खुशियों का तर्पण हुआ ।
जब विदा किया मुझको डोली में 
जानती हूँ, सूना तेरे....
मन का आँगन हो गया ।। 




दिल करता है अब भी
 एक मासूम की तरह तेरी गोद में
 अठखेलियाँ करूँ ,
कोई डांटे, डराए, धमकाए तो 
तेरे पल्लू के ओट में छिपकर
 इतराया करूँ .....



जब भी दिल भटका, टूटा 
या किसी चोट से आहत हुआ,
उस घाव पर तेरे दुलार का मरहम...
शीतल चन्दन हो गया ।
जब भी मन, कभी संशय की 
धुंध  से कलुषित हुआ,
तेरे सीख की कूची से मेरा मन
उजला दर्पण हो गया ।।





तेरे प्यार, दुलार, ममता के 
ऋण से मैं शायद ही मुक्त हो पाऊं 
या यूँ कहें कि  मैं शायद ही 
मुक्त होना चाहूँ ..... 

तेरे चरणो में बसे चारों धाम के 
तीरथ करके, बिन कहे ही 
आत्म- समर्पण हो गया ।
तुझे माँ रूप में पाकर,
मेरा जीवन धन्य और मन 
गंगा सा पावन हो गया ।।